पहाड़ एक दैवीय स्थान
दैवीय भाव से पूर्ण
क्या आप नहीं मानते की सम्पूर्ण भारत देश में जब भी किसी सफल भक्तों की चर्चा होती है तो सबसे पहले पहाड़ पहाड़ से पनपे बड़े बड़े भक्त लोगों का नाम आता है।
वास्तव में , प्राचीन काल से ही पहाड़ों को खूब मान्यता एवं सद्भाव दिया गया है। क्योंकि सबसे श्रेष्ठ कार्यों के लिए भी पहाड़ों को ही चुना जाता है।
पहाड़ भक्तों के लिए एक भक्ति भाव का स्थान होता है। वहीं देश में जो भी सद्भाव से समर्पित ब्यfक्ति अपने जीवन काल में उत्तम कार्यों को समापन करते हुए पहाड़ों की ओर आकर्षित होता है।
वह पहाड़ों में रहना एवम जीवन बिताना पसंद करता है। संभवत: पहाड़ो में जीवन जीना जितना मुश्किलों भरा होता है उतना ही जीवन ज्योति को परमात्मा से जोड़ा हुआ भी होता है।
निसन्देह मझे यह कहने की चेष्ठा हो रही है कि लोगों को यदि परमात्मा के सबसे करीब रहना है अथवा परमात्मा के चिंतन के साथ उनकी कृपा दृष्टि में रहना है तो पहाड़ों का जीवन बिताओ। क्योंकि यहां पहाड़ों में जो भी मुश्किलें होती हैं उनमें लोग उस पार ब्रह्म परमेश्वर की इच्छा मानते हुए अनुसरण करते हैं जिससे उनकी भक्ति वास्तव में उस पार ब्रह्म से जुड़ जाती है, औऱ ज्यादातर दिक्कतों का सामना करते हुए जब भक्त बार बार परमात्मा का चिंतन मनन करते हैं तो स्वतः ही परमात्मा की कृपा दृष्टि भी उनकी ओर पड़ जाती है।
इसीलिए कहा गया है पहाड़ का जीवन करुणामय जीवन होता है, यदि आपको जीवन का करुण नाद अपने जीवन मे उतारना हो तो जरूर पहाड़ के उत्पन्न भक्ति के साक्षी बने।
पहाड़ी भूमि अपने आप में एक शुद्ध, पवित्र, और शांतिपूर्ण वातावरण लोगों के जीवन को सबसे स्वच्छंद बनाता है, जीवन में पहाड़ी भूमि में रहने के अनुभव शाँति एवम शुकून प्रदान करता है।
इतिहास गवाह है, जब-जब मानवी जीवन में अशांति बढ़ी है लोगों ने पहाड़ी भूमि की शरण ली है।
जब किसी विद्वान का जीवन, अपने आप में क्रांति की ओर बढ़ता है तब वह उसे सही आयाम देने के लिए एकांत वास चुनता है औऱ सबसे बेहतर एकांतवास पहाड़ों में उनकी कंदराओं में ही पाया जाता है।
भगवान भी पिछले युगों में पहाडों में रहने की आवश्यकता और उसकी अनुकूलता को हमेशा संजोये रहते थे।
भगवान त्रेता में श्रीराम , द्वापर में श्रीकृष्ण के अलावा, कलयुग में भी प्राचीन इतिहास से मध्य इतिहास के युग में कई महापुरूषों ने पहाड़ों के महत्व को बताया है वे खुद अपने जीवन पहाड़ों पर बिताते रहे , जिनमे स्वामी विवेकानंद जी का नाम सब जानते हैं कि पहाड़ों के मंदिरों में जीवन को कितना बेहतर मानते थे। 28 वर्ष के उम्र में उन्होंने पहाड़ों में कितना विचरण किया।
यहां तक कि विदेशी कंपनियों से राज पाठ करने वाले अंग्रेज भी 19वीं सदी 1818 से 1824 में हैजा नाम से आई भयंकर महामारी से बचने के लिए पहाड़ों में ही आये थे। यह काल महामारी का कालचक्र था।
1918-20 के बीच भी एक महामारी स्पेनिश फ्लू नाम से बहुत ही भयंकर जान लेवा आयी जबकि अंग्रेजों ने शिमला की पहाड़ियों को अपना सुरक्षित आवास बनाया।
Cantonment नाम से आज भी प्रसिद्ध हैं वे सैन्य छावनियां।
सम्पूर्ण देश अंग्रेजी शासन होने के बावजूद राजधानी सैन्य छावनियों में क्यों लाया गया ये सब लोग जानते हैं।
पहाड़ परमात्मा से जुड़ा हुआ आनंद है। पहाड़ परमेश्वर की असीम कृपा का क्षेत्र है।
धन्यवाद
जै भोलेनाथ।
जै मा नंदा
बहुत अच्छा कहा। पहाड़ी मिट्टी बहुत त्याग और तपस्या का प्रतीक है
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